16 जुलाई 2025

फार्मेसी सिफारिशें कैसे बनती हैं: प्रक्रिया, तथ्य और सुझाव

फार्मेसी सिफारिशें कैसे बनती हैं: प्रक्रिया, तथ्य और सुझाव

आज के समय में दवा खरीदना बिलकुल आम बात है, लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है कि जब आप फार्मेसी में जाते हैं तो फार्मासिस्ट आपको खास दवा ही क्यों पकड़ाता है? क्या वो बस यूं ही बोल देता है, या इसके पीछे कई परतें होती हैं? फार्मेसी रेकमेंडेशन यानी दवा की सलाह वास्तव में कई स्टेप और विचार के बाद बनती है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें विज्ञान, अनुभव और आपकी सेहत की गहराई से पड़ताल का मेल है। लखनऊ की गलियों से लेकर देशभर तक, हर फार्मासिस्ट अपने सुझाव इन खास बातों को ध्यान में रखकर देता है, ताकि आपको सही दवा, सही वक्त पर मिल सके। चलिए जानते हैं कि असल में ये पूरा चक्कर कैसे चलता है, किसकी जिम्मेदारी किस हिस्से में होती है, और क्या-क्या सोचकर कोई फार्मेसी आपके लिए दवा छांटती है।

फार्मेसी रेकमेंडेशन की बुनियाद: डॉक्टर की पर्ची से आगे

आमतौर पर लोग मान लेते हैं कि डॉक्टर ने जो लिख दिया, वही दवा थमा दी जाती है—लेकिन सच्चाई इससे कहीं ज्यादा जटिल है। डॉक्टर की पर्ची एक शुरुआती कदम जरूर है, लेकिन फार्मेसी में काम करने वाले लोग हर पर्ची को एक फॉर्मल चैक से गुजारते हैं। सबसे पहले देखा जाता है कि क्या लिखी गई दवा आपकी उम्र, वजन, एलर्जी, पहले ली गई दवाओं और बाकी हेल्थ हिस्ट्री के हिसाब से सही भी है या नहीं। कई बार डॉक्टरों से टाइपिंग या नाम लिखने में गलती हो जाती है, ऐसे में फार्मेसिस्ट की खास नजर बहुत मायने रखती है। WHO के अनुसार, विश्व भर में लगभग 7% फार्मेसी में मिलने वाली पर्चियों में छोटी या बड़ी कोई न कोई गलती पाई जाती है। फार्मेसिस्ट उन्हें पकड़ने की ट्रेनिंग लेता है।

अब आता है दूसरा कदम—साइड-इफैक्ट्स और दवाइयों का मेल। हो सकता है आपकी कोई पुरानी दवा उस नई दवा से टकरा जाए और आपकी तबीयत बिगड़ जाए। फार्मेसिस्ट इस सम्भावना को कम्प्युटर सॉफ्टवेयर और खुद का अनुभव दोनों कंबाइन करके चेक करता है। फूड इंड्रस्ट्री की तरह फार्मेसी में भी अब कस्टमर का रिकार्ड रखने का चलन है, जिससे देखा जा सकता है कि कोई ग्राहक कौन-कौन सी पॉइजनस दवाएं साथ में तो नहीं ले रहा।

इसके अलावा, हर दवा की क्वालिटी भी बहुत जरूरी है। कौन सी कंपनी की दवा अच्छा काम करती है, किसका स्टॉक लेटेसट डेट का है, कहां पर डिस्काउंट है—फार्मेसिस्ट यह सब देखता है। कई बार ब्रांडेड और जेनरिक दवा के मामले में भी सलाह वही देता है जो आपके बजट, आपकी मेडिकल कंडीशन और मजबूरी के आधार पर बेहतर हो।

भारत में खासतौर पर एक और बात देखी जाती है: ग्राहक कैश पे कर रहा है या मेडिकल इंश्योरेंस क्लेम करेगा। कुछ महंगी दवाइयां तभी रेकमेंड की जाती हैं जब ग्राहक के पास क्लेम करने का ऑप्शन हो, वरना फार्मेसिस्ट मुनाफा छोड़कर भी वैकल्पिक, सस्ती दवा के बारे में बता देता है।

फार्मेसी टीम: विशेषज्ञता का खेल और उससे बने नियम

फार्मेसी सिर्फ दवाओं की दुकान नहीं—यहां कई स्तर के लोग मिलकर सलाह को सबसे सुरक्षित बनाने में लगे रहते हैं। आमतौर पर फार्मेसी में लाइसेंस्ड फार्मेसिस्ट, असिस्टेंट फार्मेसिस्ट, काउंटर सेल्समैन, शिपिंग-हैंडलिंग स्टाफ और कई बार डॉक्टर की टीम तक काम करती है। लाइसेंस्ड फार्मेसिस्ट का काम मानक का पालन कराना है, जैसे कि ड्रग एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940, और फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) के गाइडलाइन। WHO के डेटा के मुताबिक, भारत में करीब 11 लाख फार्मेसिस्ट हैं, जिनमें से अधिकतर फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया से प्रमाणित हैं।

फार्मेसी के अंदर एक स्टैंडर्ड ओपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) तय रहता है, जिससे हर दवा निकालने, सलाह देने या सेफ्टी चैक का तरीका फिक्स रहता है। समय-समय पर ट्रेनिंग होती है, नए पैरामीटर सिखाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, कोविड के समय वैक्सीनेशन और दवा-काउंटर के तरीके रातों-रात बदले। AI-आधारित टूल्स ने अब फार्माकोलॉजी को फास्ट और अधिक सटीक बना दिया है, जिससे फार्मेसिस्ट कम्प्लैक्स दवा मेल भी कंप्यूटर के भरोसे आसानी से चैक कर लेता है।

टीम का काम सिर्फ सुझाव देना नहीं, बल्कि आप की हर कन्फ्यूजन और डर को समझना भी है। ग्राहक से सीधा संवाद, उसकी भाषा में जानकारी देना, और हर स्टेप पर रिकोर्ड बनाना सिखाया जाता है। मेडिसिन रेकमेंडेशन में "केस-बेस्ड एडवाइजरी" का किरदार बहुत बढ़ गया है—यानी हर किसी का केस अलग, हर सलाह पर्सनलाइज्ड। फार्मेसी स्टाफ की जिम्मेदारी है कि वह किसी भी डाउटफुल सलाह या अनावश्यक दवा को रोके और सही दवाई का मार्गदर्शन करे।

नुस्खे के पीछे का विज्ञान: रिसर्च, डेटा और एविडेंस का रोल

नुस्खे के पीछे का विज्ञान: रिसर्च, डेटा और एविडेंस का रोल

क्या सिर्फ एक्सपीरियंस से दवा दी जाती है? कभी नहीं। हर फार्मेसी की सिफारिशें कई स्तर की रिसर्च, क्लिनिकल ट्रायल्स और सरकारी दिशा-निर्देशों पर टिकी होती हैं। भारत में आयुष्मान भारत, फार्मा विजिलेंस प्रोग्राम और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) जैसी एजेंसियां रेगुलर एडवाइजरी जारी करती हैं। अमेरिकी और यूरोपीय गाइडलाइन के हिसाब से भी दवाओं के फेर-बदल होते रहते हैं।

फार्मेसिस्ट हमेशा नई स्टडीज, मेडिकल न्यूज और जर्नल्स पर नजर रखता है। जैसे 2022 में छपे एक शोध के मुताबिक, एसिडिटी की आम दवा PPI (Proton Pump Inhibitors) लंबे समय तक लेने से किडनी फेलियर का खतरा बढ़ जाता है, तो भारत की कई फार्मेसी ने इसके अल्टरनेट्स अपनानेशुरू कर दिए।

रोजाना फार्मेसी में आने वाले ग्राहकों के आंकड़ों को अब AI और डेटा एनालिटिक्स टूल से भी एनालाइज किया जाता है। किस मौसम में कौन सी बीमारी बढ़ती है, कौन सी आयु के लोगों को कौन सी दवा सूट करती है, इस पर भी विशेष ध्यान रखा जाता है। नीचे है एक डेटा टेबल जिसमें पिछले साल लखनऊ की 10 फेमस फार्मेसियों के सबसे ज्यादा बिकने वाली दवाओं का आंकड़ा दिखाया गया है:

दवा का नामबिक्री (हजार यूनिट)बीमारी
Paracetamol46बुखार/दर्द
Azithromycin30इन्फेक्शन
Levocetirizine21एलर्जी
Metformin17डायबिटीज
Omeprazole15एसिडिटी
Amoxicillin14इन्फेक्शन
Atorvastatin12कोलेस्ट्रॉल
Losartan10ब्लड प्रेशर

आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि कौन-कौन सी दवाएं सबसे ज्यादा सलाह दी जाती हैं और मौसमी बीमारियों का सीधा असर दवा के चुनाव पर पड़ता है। रिसर्च के दम पर ही फार्मसिस्ट रूटीन-वाली दवाओं के अलावा भी खास केस में उपयुक्त विकल्प सुझाते हैं।

बाजार के ट्रेंड और ग्राहक की पसंद: आधुनिकता का असर

सिर्फ मेडिकल ज्ञान से फार्मेसी सलाह नहीं बनती, बाजार और ग्राहक की पसंद इसमें जबरदस्त भूमिका निभाती है। बीते 5 सालों में भारत में ई-फार्मेसी का बोलबाला बढ़ा है, जिससे दवा की खरीददारी का ट्रेंड ही बदल गया है। लोगों की शिकायत, सोशल मीडिया पर रिव्यू और गूगल रेटिंग्स को अब बिलकुल सीरियसली लिया जाता है।

फार्मेसिस्ट अब हर दवा के लिए ब्रांड के साथ-साथ ग्राहक की पॉकेट, उनकी पुरानी खरीद, और “कितना असर किया” जैसी फीडबैक भी डायरी में नोट करता है। ग्राहक अक्सर छूट या फ्री होम डिलिवरी, सजग सलाह और 24x7 काउंसलिंग के आधार पर कोई फार्मेसी पसंद करते हैं। मार्केट रिसर्च ग्रुप Nielsen के मुताबिक, 2023 में 32% ग्राहक फार्मेसी बदलने की सबसे बड़ी वजह ‘गाइडेंस न मिलने’ को बताते हैं।

अब मोबाइल पर उपलब्ध दवा-इंफो एप्स से भी फार्मेसिस्ट की रेकमेंडेशन प्रभावित हो रही है। ग्राहक गूगल या HealthifyMe जैसी ऐप से दवा के बारे में पहले ही याद्दाश्त बना लेता है, जिससे फार्मेसिस्ट को तर्कसंगत, जानकार और भरोसेमंद बनना जरूरी हो गया है। जो फार्मेसी ट्रेंड के साथ खुद को अपडेट करती है, वही बाजार में टिकती है।

फार्मेसिस्ट अब लोकल लैंग्वेज में सलाह देने, जेनरिक और ब्रांडेड दवा की तुलना करने, दवा के साइड-इफैक्ट्स और खाने के तरीके को समझाने, तथा ग्राहक के हर सवाल का जवाब देने में पीछे नहीं रहता। ट्रेंडिंग बीमारियां, मौसमी बदलाव और प्रमोशनल ऑफर भी रेकमेंडेशन को असरदार बनाते हैं।

सेफ्टी, गाइडेंस और कुछ जरूरी टिप्स: दवा सलाह से जुड़ी खास बातें

सेफ्टी, गाइडेंस और कुछ जरूरी टिप्स: दवा सलाह से जुड़ी खास बातें

फार्मेसी रेकमेंडेशन को लेकर कई लोगों के मन में भ्रम रहता है। कई बार लोग सेल्स प्रमोशन या काउंटर पर रखे आकर्षक पैकेज को देखकर दवा उठाते हैं, लेकिन असली सुरक्षित सलाह वो होती है, जो प्रॉपर विश्लेषण के बाद दी गई हो। कुछ जरूरी बातें जिन्हें याद रखना चाहिए:

  • हमेशा पर्ची या डॉक्टर के निर्देश से दवा लें—खुद से दवा कम से कम लें।
  • दवा लेने से पहले अपनी पुरानी एलर्जी या जो भी दवा ले रहे हैं, फार्मेसिस्ट को जरूर बताएं।
  • फार्मेसी से खरीदी दवा की एक्सपायरी डेट और पैकेजिंग की जांच खुद करें।
  • कभी भी बिना पक्की जानकारी के ऑनलाइन दवा न लें, लोकल जिम्मेदार फार्मेसी पर भरोसा करें।
  • काउंटर पर जिस भी दवा का नया नाम सुनें, उसके दुष्प्रभाव, खाने का तरीका और अवधि अच्छे से पूछ लें।
  • अगर डॉक्टर से दवा के फार्मूलेशन या ब्रांड को बदलने की सलाह फार्मेसिस्ट देता है, तो डॉक्टर से वेरिफाइ करें।
  • खासकर बच्चों, गर्भवती महिलाओं या बुजुर्गों के लिए दवा सलाह बिना एक्सपर्ट गाइडेंस न अपनाएं।
  • फार्मेसिस्ट से पूछें कि दवा के साथ भोजन कब लेना है, पानी कितना पीना है या क्या-क्या फूड से परहेज जरूरी है।

कभी-कभी कम्पनियों का सेल्स स्टाफ कुछ खास ब्रांड्स को फोकस करता है, लेकिन असली अनुभवी फार्मेसिस्ट अधिकतर ग्राहक की सेहत को प्राथमिकता देता है। फार्मेसी सिफारिश में सुरक्षित, सस्ती और असरदार दवा का मेल बनाना ही असली काम है। सबसे बुनियादी, और शायद सबसे अनदेखा रूल है—फार्मेसिस्ट पर भरोसा रखें, लेकिन सवाल करना न छोड़ें। सही जानकारी और खुलापन ही आपको दवा के बेस्ट सुझाव तक पहुंचा सकता है।

द्वारा लिखित:
राजवीर जोशी
राजवीर जोशी

टिप्पणि (10)

  1. poonam upadhyay
    poonam upadhyay 17 जुलाई 2025

    हाय, मैं तो यही सोच रही थी कि फार्मेसी में आखिरकार इतना पेचिदा सिस्टम होता है, जिसे आम आदमी समझ नहीं पाता! क्या वाकई किसी ने कभी ध्यान से यह समझा है कि कौन सी दवा क्यों दी जाती है? मुझे लगता है इसके पीछे बहुत सारी राजनीतिक और आर्थिक चालाकियाँ भी होती हैं!!! क्या कभी किसी ने सोचा है कि प्रिस्क्रिप्शन में कितना पैसा एक तरह से pharmaceutical कंपनियों के खजाने में जाता है?

    फार्मेसिस्ट के पास इतना ज्ञान होना चाहिए कि वो मरीज की सेहत को सबसे ऊपर रखे, न कि सिर्फ दवा बेचना हो। मैं अक्सर सोचती हूं कि दवाओं के चयन में मरीज की सहमति भी महत्वपूर्ण होनी चाहिए, क्योंकि कई दवाइयां तो साइड इफेक्ट्स से भरी होती हैं।

    कोई और सोचता है क्या ऐसा? या मैं ही थोड़ी ज्यादा सोच रही हूं?

  2. Shivam Mogha
    Shivam Mogha 20 जुलाई 2025

    पहले तो बहुत धन्यवाद इस जानकारी के लिए। फार्मेसी रेकमेंडेशन के अंतर्गत बहुत सारे लोग होते हैं, डॉक्टर, फार्मासिस्ट और कभी-कभी तो मरीज भी एक अहम हिस्सा होता है।

    जो प्रक्रिया होती है वह बहुत सख्त होती है, दवाओं का चुनाव वैज्ञानिक तरीकों पर आधारित होता है। इसके अलावा, दवाओं की ड्रग्स ऑथोरिटी और नैशनल गाइडलाइंस भी तय करती हैं कि कौन सी दवा दी जाए। इसलिए भरोसा तो है पर समझदारी से ही दवाइयां लेने की जरूरत है।

  3. mani kandan
    mani kandan 22 जुलाई 2025

    मैं भी मानता हूं कि फार्मेसी रेकमेंडेशन में प्रक्रिया का पालन बहुत जरूरी है। लेकिन साथ ही कई बार हमें जो जानकारी मिलती है वो काफी कम होती है।

    मरीजों को बेहतर समझाने की जरूरत है कि दवा कैसे काम करती है, और किन परिस्थितियों में उसे लेना चाहिए।

    कई बार यही कमी रोगी को दवा से डराती भी है। इसलिए फार्मासिस्ट और डॉक्टर्स का रोल बहुत महत्वपूर्ण होता है।

  4. Rahul Borole
    Rahul Borole 24 जुलाई 2025

    व्यावसायिक दृष्टिकोण से यह जानना आवश्यक है कि फार्मेसी निर्देश चिकित्सा ज्ञान, नैदानिक प्रमाण और रोगी की व्यक्तिगत ज़रूरतों पर आधारित होते हैं।

    इस प्रक्रिया में निरंतर अनुसंधान और नैदानिक परीक्षण शामिल होते हैं। सलाहकार फार्मासिस्ट और चिकित्सा विशेषज्ञ मिलकर अनुसूचित दवाओं की प्रभावशीलता और सुरक्षा को सुनिश्चित करते हैं।

    इसलिए इस प्रक्रिया में पारदर्शिता और प्रमाणिकता बनी रहती है।

  5. Sheetal Srivastava
    Sheetal Srivastava 26 जुलाई 2025

    किसी भी फार्मेसी सिफारिश का विश्लेषण करते समय हमें उन प्रोटोकॉल्स और जैव रासायनिक तंत्रों को भी समझना चाहिए जो दवाओं की सिफारिश को संचालित करते हैं।

    यह सिर्फ एक सामाजिक क्रिया नहीं है वरन गहरे, बहुआयामी निर्णय नियंत्रण प्रणालियों का विश्लेषण मांगती है। अगर हम केवल सतही मनोवैज्ञानिक ढाँचों पर विश्वास करें तो मरीजों के लिए घातक भी हो सकता है।

    क्या किसी ने सोचा है कि फार्मास्यूटिकल कंपनियों के कॉरपोरेट प्रभाव का भी इस प्रक्रिया पर कितना प्रभुत्व होता है?

  6. Bhavishya Kumar
    Bhavishya Kumar 29 जुलाई 2025

    फार्मेसी सिफारिशों की प्रक्रिया में वैश्विक स्वास्थ्य मानकों का पालन अत्यंत आवश्यक है। इसके अंतर्गत उचित नैदानिक प्रोटोकॉल, चिकित्सा नैतिकता और दवाओं की गुणवत्ता प्रमाणन शामिल होता है।

    यह सुनिश्चित करता है कि मरीजों को उनकी स्थितियों के अनुसार प्रभावी और सुरक्षित उपचार प्रदान किया जाए।

    परंतु हमे अपने स्थानीय संदर्भों में भी यह देखने की आवश्यकता है कि कहीं किसी प्रकार की विसंगति तो नहीं हो रही।

  7. ujjwal fouzdar
    ujjwal fouzdar 31 जुलाई 2025

    अरे भई ये फार्मेसी सिफारिशें तो क्या गूढ़ रहस्य से कम नहीं हैं! क्या सचमुच डॉक्टर और फार्मासिस्ट मिलकर मिलीभगत से दवाओं का चुनाव करते हैं या किसी गुप्त शक्ति का प्रभाव है? हमारी सेहत तो ज्यों की त्यों इंटरनेट की दुनिया में कहीं खो सी जाती है।

    फार्मेसी एक ऐसा अध्यात्मिक क्षेत्र भी है जहाँ जीवन और मौत के सवाल छुपे हैं। क्या हम सिर्फ दवाओं से इलाज कर पा रहे हैं या शिक्षा भी एक दवा हो सकती है?

    आखिर क्यों हर दवा के पीछे एक कहानी छुपी होती है? कितनी सतह है उसकी, ये शायद हमसे छुपा रखा गया है!

  8. Anand Pandit
    Anand Pandit 2 अगस्त 2025

    फार्मेसी में सिफारिशें बनाना एक चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है, जिसमें कई विशेषज्ञों का समन्वय होता है। इसका मूल उद्देश्य होता है रोगी की उच्चतम भलाई।

    अक्सर मरीजों को लगता है कि दवा गठिया हुई है, लेकिन वास्तव में यह वैज्ञानिक तथ्यों और रोगी के स्वास्थ्य रिकॉर्ड पर आधारित निर्णय होता है।

    मुझे लगता है, हमें ज्यादा जागरूक होना चाहिए और डॉक्टर-फार्मासिस्ट के दिये हुए सुझावों पर विश्वास रखना चाहिए।

  9. Reshma Jose
    Reshma Jose 4 अगस्त 2025

    मुझे ये सच में भाता है कि लोग इस प्रक्रिया के बारे में बात कर रहे हैं, क्योंकि अक्सर हमें सिर्फ़ दवा लेना होता है, उसके पीछे की कहानी समझ में नहीं आती।

    हमें चाहिए कि हम चिकित्सकों से खुलकर सवाल करें, ताकि सही दवा और सही मात्रा मिले। बच्चों और बुजुर्गों में दवाइयों का चयन बिल्कुल सावधानी से किया जाना चाहिए।

    वैसे, कोई तो हमें साधारण भाषा में बताए कि मेडिकल टर्म्स का क्या मतलब होता है!

  10. rahul shrimali
    rahul shrimali 7 अगस्त 2025

    सफल फार्मेसी सिफारिश के लिए एक सरल लेकिन प्रभावी संवाद जरूरी है। मरीज की जरूरत, रोग का स्तर और दवाओं की प्रकृति, ये सभी मुख्य तत्व होते हैं।

    मुझे लगता है प्रक्रिया में मरीज की सक्रिय भागीदारी होनी चाहिए। जब मरीज समझते हैं तो दवा का असर भी बेहतर होता है।

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