पेरेंट बनने के बाद सबसे पहली टेंशन डायपर की होती है। क्या आपका भी मन यही सोचता है – आज फिर कितने डायपर खराब हुए? आरव जब पैदा हुआ था, तब मुझे भी लग रहा था कि कहीं मैं जरूरत से ज्यादा डायपर तो नहीं बदल रहा! इतना खर्च और बार-बार उठना, क्या सही है? सच पूछो तो हर नए पेरेंट्स को यही सवाल परेशान करता है कि नवजात शिशु के लिए रोज़ कितने डायपर लगेंगे। कई लोग तो डायपर खरीदने की लिस्ट देखकर ही डर जाते हैं। एक न्यूबॉर्न की ज़िंदगी डायपर में ही गुजरती है – खाओ, सुओ, खिलखिलाओ… और फिर बदलो डायपर! पर सही गिनती, सही टाइम और सही तरह से बदलने का तरीका जानना बेहद जरूरी है।
नवजात के लिए डायपर की सही संख्या क्या है?
अब बात करते हैं असली सवाल की—नवजात को रोज़ कितने डायपर चाहिए? डॉक्टर और चाइल्ड केयर स्पेशलिस्ट मानते हैं कि एक स्वस्थ नवजात शिशु औसतन 8 से 12 डायपर रोज़ गीले करता है। इसमें 6-8 डायपर सिर्फ पेशाब (wet diaper) वाले होते हैं और बाकी 2-4 डायपर पोटी (stool diaper) वाले। असल में, आपकी बेबी की ऐज और खाना पीना भी डायपर की संख्या को प्रभावित करता है। जन्म के पहले हफ्ते में ये आंकड़ा थोड़ा ऊपर-नीचे हो सकता है क्योंकि तब पेट में मौजूद मैकोनियम (काला टार जैसा पहला potty) निकलता है।
अभी देखिए—नन्हें शिशु को हर 2 से 3 घंटे में डायपर बदलना पड़ता है। मतलब, आप दिन-रात जगना मत भूलिए! बच्चा अगर ब्रेस्टफीड करता है, तो उसे शायद थोड़ा ज्यादा पेशाब और पॉटी लगे, क्योंकि ब्रेस्टमिल्क जल्दी पचती है। बोतल मिल्क (फॉर्मूला) फीड वाले बच्चों में डायपर थोड़ा कम गीले हो सकते हैं।
एक टेबल क्यों न बना लूं, ताकि एक नज़र में समझ आ जाए:
आयु (दिन/सप्ताह) | औसत रोज़ डायपर (गीले+पोटी) |
---|---|
1-3 दिन | 6-8 |
4-7 दिन | 8-10 |
2-4 सप्ताह | 10-12 |
1-2 माह | 8-10 |
सीधा सा फंडा है—जितना फीड, उतना डायपर। वैसे, अगर बच्चा दिन में 6 से कम बार पेशाब करता है तो डॉक्टर से मिलिए, ये डिहाइड्रेशन का इंडिकेशन हो सकता है। उसी तरह, अगर बार-बार जोर से हरे या लाल रंग की पॉटी हो, तो डॉक्टर को दिखाएं।

डायपर बदलने के सही वक्त और तरीका
आरव के टाइम मुझे जितने फन आईडियाज़ मिले, सबका सीधा व बापूसी फंडा था—ज्यादा देर तक गंदा डायपर मत छोड़ो, वरना रैशेज़ और इन्फेक्शन पक्का है। पोंपोटम या डायपर चेंजिंग स्टेशन होने से या पुराने साफ़ टॉवल का इस्तेमाल करने से काम और आसानी से हो जाता है। कई बार लोग सोचते हैं कि चमकदार डायपर सूखा है, पर असल में वो कभी-कभी थोड़ा गीला रह जाता है, इसीलिए हर 2-3 घंटे में बदलना जरूरी है।
डायपर बदलने के समय इन बातों का ध्यान रखें:
- हर फीड के बाद डायपर देख लें, खासकर रात में भी।
- डायपर खोलकर 'फीता टेस्ट' करें – गीला लगे तो फौरन बदलें।
- अगर कोई गंध आए या डायपर भारी लगे, तो देर न करें।
- पोटी के बाद एक पल के लिए भी डायपर न छोड़ें, काम बनते ही बदलें।
सबसे जरूरी टिप: डायपर रैश क्रीम (जैसे जिंक ऑक्साइड वाली) हमेशा पास रखें, ताकि हर बार डायपर बदलने के बाद हल्का-सा लगा सकें। आरव के शुरुआती 40 दिन मैंने बिना छुट्टी के डायपर बदला, और सच में—उसकी स्किन हमेशा मुलायम रही। आप भी, हर बार सॉफ्ट कॉटन वाइप से सफाई करें; पानी और सूती कपड़ा सबसे बेस्ट हैं। बड़ी गड़बड़ तब होती है, जब हम गीले वाइप्स में खुशबू या कैमिकल्स वाला चुन लेते हैं, जिससे इन्फेक्शन और रैश हो सकते हैं।
डायपर के साइज़ भी ध्यान से चुनें। साइज छोटा हुआ तो लीक होगा, बड़ा हुआ तो चफ्फिंग और स्किन फोल्ड्स में गंदगी जमा होगी। हमेशा वजन और एज के मुताबिक सही साइज़ वाला डायपर खरीदें, और समय-समय पर साइज़ बदलते रहें। शिशु की स्किन बहुत नाजुक होती है, इसीलिए एक ब्रांड पर अंधा भरोसा न करें—हो सके तो अलग-अलग ट्राई करें, जो सूट करे उसी को रखें। मैंने आरव पर अलग-अलग ब्रांड्स ट्राय करके अपना फेवरेट चुना।
डायपर बदलना किसी जंग से कम नहीं, खासकर रात के समय। मेरा खुद का तरीका—रात को बेबी के पास सब सामान लेकर सोना, ताकि आधी नींद में उठना न पड़े। एक आसान ट्रिक यह है कि रात में सुपर-एब्जॉरबेंट डायपर लगाओ, ताकि बार-बार उठने की जरूरत न पड़े। लेकिन सुबह होते ही उसे तुरंत बदल दो, ताकि गंदगी ज़्यादा समय तक टिकी न रहे।

बजट और स्टोकिंग: कितने पैक खरीदें? और टिप्स
डायपर का खर्च – बस पूछो मत! पहली बार जब मैंने 1 हफ्ते का डायपर खर्च जोड़ा तो पसीना छूट गया। महीने में करीब 300-350 डायपर तक इस्तेमाल हो सकते हैं, अगर आप हर 2-3 घंटे में बदलते हैं। एक डायपर का औसत दाम 9-12 रूपये पड़ता है, यानी सिर्फ डायपर पर 2700-4000 रुपए महीना तक जाने की फुल संभावना।
इसलिए डायपर खरीदते वक्त कुछ बातें दिमाग में रखो:
- शुरू में बहुत सारे बड़े पैकेट्स साथ मत खरीदो, पहले 2-3 ब्रांड ट्राई करो।
- ऑफर्स या कूपन छूट मिले तो पैक क्रय कर लो, पहले से स्टॉक रखना बेहतर है।
- नाइटवियर डायपर अलग आते हैं, जो ज़्यादा अब्जॉर्ब कर सकते हैं।
- मार्केट में क्लॉथ डायपर भी मिलते हैं, जो वॉश करके दोबारा यूज़ हो सकते हैं—स्किन-फ्रेंडली भी होते हैं।
- नॉर्मल डायपर के साथ कुछ क्लॉथ डायपर पास रखें, इनवेस्टमेंट कम और रिस्क भी कम।
अगर आप पर्यावरण का ध्यान रखते हैं, तो क्लॉथ डायपर बढ़िया हैं। पहली बार नया फैब्रिक इस्तेमाल करने से पहले एक बार जरूर धोओ। क्लॉथ डायपर हर 2 घंटे में बदलना पड़ सकता है, लेकिन बच्चे की त्वचा को सांस (breathable) मिलती है।
एक और टिप—अगर घर में कोई बुजुर्ग है तो उनसे पुराने ज़माने के 'कॉटन लंगोट' के तरीके पूछ सकते हो। चाहे जितना भी fancy diaper आ जाए, दादी-नानी के पास बच्चे को कंफर्ट देने के देसी तरीके अब भी बेस्ट हैं।
डायपर स्टॉक हमेशा कुछ एक्स्ट्रा रखो, कभी भी अचानक से खत्म हो सकता है। और अगर पिकनिक, हॉस्पिटल या किसी के घर जाना हो तो दो गुना डायपर बैग में डाल लेना। और हां, घर में बैकअप वाइप्स, डायपर क्रीम और बदलने वाली चटाई/टॉवल भी साथ में रखें।
डायपर ट्रेनिंग का सवाल जब बड़े होते बच्चों पर आता है, तब भी गिनती और स्वच्छता का ध्यान बना रहे। लेकिन नवजात के लिए 'डायपर' और सही नंबर की बारीक तैयारी सबसे पहली जरूरत है। कम डायपर से बच्चा गंदा रहेगा, ज्यादा बदलने से स्किन हेल्दी रहेगी। और आर्थिक रूप से भी, डायपर मैनेजमेंट करना पेरेंट्स का युवराज स्किल है – पैसा, सफाई और नींद तीनों का बैलेंस।
तो ये सीधा-सा फंडा है—जब तक बच्चा खुद टॉयलेट ट्रेन न हो जाए, तब तक नवजात डायपर फुल तैयारी में रखो, सही संख्या मैनेज करो और बेबी की स्माइल कायम रहो! कोई शॉर्टकट नहीं बस प्यार, धैर्य और थोड़ी समझदारी!
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