11 सितंबर 2025

नकली दवा कैसे पहचानें: 2025 में असली-नकली की तेज़ जांच गाइड

नकली दवा कैसे पहचानें: 2025 में असली-नकली की तेज़ जांच गाइड

दवा गलत निकली तो इलाज नहीं, जोखिम बढ़ता है-यही असली समस्या है। भारत में 2025 तक टॉप ब्रांड्स पर 2D QR कोड अनिवार्य हो चुका है, फिर भी नकली सप्लाई चैन में घुस जाती हैं। आप रोज़ फ़ार्मेसी जाते हैं; 60-90 सेकंड की स्मार्ट जांच आपकी सबसे बड़ी सुरक्षा है। यहां आपको वही काम के टूल मिलेंगे-जो देखना है, कैसे मिलान करना है, किन लाल झंडों पर तुरंत रुकना है, और किस सरकारी चैनल पर रिपोर्ट करना है। मैं लखनऊ में रहता हूं; यहां के बाजारों में मैंने खुद देखा है कि थोड़ी सतर्कता कैसे बड़ी ग़लती होने से बचा देती है।

TL;DR: 60 सेकंड की फास्ट चेक

  • नकली दवा पहचान के लिए 5 त्वरित संकेत: पैकेजिंग में त्रुटि, QR/बारकोड mismatch, बैच-एक्सपायरी का असंगत प्रिंट, बहुत सस्ती कीमत, असर/साइड-इफेक्ट में अनोखी गड़बड़ी।
  • टॉप 300 ब्रांड्स (भारत, 2023 आदेश) पर 2D QR/बारकोड: स्कैन करें और GTIN/बैच/एक्सपायरी से पैक पर लिखे डेटा का मिलान करें।
  • बिल लें और स्ट्रिप/बॉक्स संभालें; शंका हो तो सेवन रोकें, फार्मासिस्ट/डॉक्टर से बात करें और Med Safety App (IPC) पर रिपोर्ट करें।
  • ऑनलाइन खरीद? प्रिस्क्रिप्शन अनिवार्य, GST इनवॉइस, लाइसेंसी ई-फार्मेसी; संदिग्ध भारी डिस्काउंट से बचें।
  • WHO के मुताबिक लो- और मिडिल-इनकम देशों में 1/10 मेडिकल प्रोडक्ट सबस्टैंडर्ड/फॉल्सिफाइड हो सकते हैं; भारत की राष्ट्रीय सर्वे (CDSCO) में स्प्यूरियस दर बहुत कम मिली, फिर भी सतर्क रहना जरूरी है।

कदम-दर-कदम: 90 सेकंड में असली-नकली की जांच

ये सीक्वेंस घर या फ़ार्मेसी काउंटर पर फॉलो करें। किसी एक संकेत के आधार पर निष्कर्ष न निकालें-कम से कम दो मजबूत संकेत मिलें तभी रोकें।

  1. बिल और प्रिस्क्रिप्शन: शुरुआत यहीं से। बिल पर दवा का नाम, स्ट्रेंथ, ब्रांड/जनरिक, मात्रा, बैच/लॉट (अगर छपा हो) और MRP मैच करें। बिना बिल, बिना प्रिस्क्रिप्शन-रिस्क तुरंत बढ़ जाता है।

  2. पैकेजिंग की आंखों-देखी (15-20 सेकंड):

    • स्पेलिंग/फ़ॉन्ट गलती, लोगो का धुंधला प्रिंट, कलर टोन में असंगति। असली पैक पर प्रिंट शार्प, एकसमान और क्लियर कंट्रास्ट होता है।
    • MRP और मैन्युफैक्चरिंग/एक्सपायरी: टेंपर-एविडेंट स्टिकर/इंकजेट मार्किंग स्पष्ट हो। अचानक से बदला हुआ MRP स्टिकर एक लाल झंडा हो सकता है।
    • सील/श्रिंक-रैप/इंडक्शन-सील: सिरप/इंजेक्शन की बोतल पर रिंग/सील टूटी हो तो पैक स्वीकार न करें।
  3. बैच नंबर मिलान (10 सेकंड): कार्टन, ब्लिस्टर स्ट्रिप और लीफलेट-तीनों पर बैच नंबर, MFD, EXP मैच होने चाहिए। mismatch = हाई-रिस्क।

  4. QR/बारकोड स्कैन (20-30 सेकंड): टॉप 300 ब्रांड्स पर 2D कोड अनिवार्य है (भारत सरकार, 2023)। किसी भरोसेमंद QR/बारकोड स्कैनर से स्कैन करें। स्क्रीन पर दिखे GTIN/बैच/एक्सपायरी/मैन्युफैक्चरिंग डेट को पैक पर प्रिंटेड डेटा से मिलाएं। mismatch या डेड लिंक-रुकें और फार्मेसी से स्पष्टीकरण लें।

  5. फॉर्म/टैबलेट की क्वालिटी (10-15 सेकंड): टैबलेट पर अनियमित किनारे, पाउडर निकलना, अजीब गंध/रंग, कैप्सूल में अलग-अलग रंग, सिरप में कण-ये लाल झंडे हैं।

  6. कीमत की कसौटी (5-10 सेकंड): बहुत सस्ता = जरूरी नहीं कि नकली, क्योंकि जन-औषधि/जनरिक सस्ते होते हैं। लेकिन हाई-वैल्यू ब्रांड पर असामान्य भारी डिस्काउंट और बिना बिल-शक बढ़ाएं। NPPA के प्राइस-सीलिंग ऐप्स/डेटा से MRP समझ सकते हैं।

  7. पहली डोज़ का ऑब्ज़र्वेशन: असर बिल्कुल न दिखना, या अजीब साइड-इफेक्ट (जैसे दवा के क्लास से मेल न खाए) तो सेवन रोकें और डॉक्टर से बात करें; पैक/बिल संभालकर रखें। PvPI (Indian Pharmacopoeia Commission) के Med Safety App पर घटना रिपोर्ट कर दें।

  8. कोल्ड-चेन दवाएं (इंसुलिन/टीके/बायोलॉजिक्स): स्टोरेज पर सबसे ज़्यादा गड़बड़ी यहीं होती है। पैक पर तापमान रेंज चेक करें। वार्मिंग/फ्रीजिंग इंडिकेटर (अगर लगा हो) देखें। बोतल/पेन पर कंडेन्सेशन के दाग, क्रिस्टल, दूधिया रंग-रिस्क। गलत-स्टोर्ड दवा भी जानलेवा हो सकती है, भले नकली न हो।

नोट: होलोग्राम/स्क्रैच-सील आजकल कॉपी भी होती हैं। इन्हें अकेला प्रमाण न मानें-हमेशा मल्टी-फैक्टर चेक करें।

उदाहरण और रियल-लाइफ सीनारियो (भारत, 2025)

उदाहरण और रियल-लाइफ सीनारियो (भारत, 2025)

सीनारियो 1: QR mismatch-आपने हाई-डिमांड एंटीबायोटिक खरीदी। बॉक्स पर QR है, स्कैन में बैच AB123 और EXP 11/2026 दिखा, जबकि बॉक्स पर AB128 और EXP 12/2026 छपा है। यह सॉफ्ट-सिग्नल नहीं, स्ट्रॉन्ग रेड-फ्लैग है। सेवन रोकें, फार्मासिस्ट से एक्सचेंज/रिफंड लें और कंपनी/CDSCO/IPC को रिपोर्ट करें।

सीनारियो 2: बहुत सस्ता, बिना बिल-ब्लड-थिनर पर 40-50% डिस्काउंट, स्टाफ कहे “बिल नहीं लगेगा”। हाई रिस्क। ऐसे में या तो लाइसेंसी फार्मेसी से ही लें या जन-औषधि स्टोर की जनरिक लें, जहां बिल और बैच ट्रेसएबिलिटी होती है।

सीनारियो 3: असर नहीं, अजीब साइड-इफेक्ट-दर्द निवारक लेने पर दर्द बिल्कुल न घटे और चक्कर/त्वचा पर चकत्ते उभरें। यह फेक/सबस्टैंडर्ड या ड्रग-ड्रग इंटरैक्शन भी हो सकता है। डॉक्टर से बात करें; पैक/बैच की फोटो रखें; Med Safety App पर रिपोर्ट कर दें-सिस्टम ऐसे डेटा से हॉट-स्पॉट पकड़ता है।

सीनारियो 4: इंसुलिन पेन-ठंडी चेन का दोष-पेन में बारीक फ्लेक्स दिखें, डोज़ के बाद शुगर रीडिंग सुधार न हो। नकली जरूरी नहीं-यह खराब स्टोरेज भी हो सकता है। फिर भी वही प्रोटोकॉल: इस्तेमाल रोकें, फार्मासिस्ट/डॉक्टर से मिलें, बैच रिपोर्ट करें।

सीनारियो 5: ऑनलाइन फार्मेसी-ऐप प्रिस्क्रिप्शन मांगे, फार्मासिस्ट काउंसलिंग दे, GST इनवॉइस दे-ये अच्छे संकेत हैं। “प्रिस्क्रिप्शन नहीं तो भी चलेगा” या “Pay outside app for extra discount”-ये लाल झंडे हैं।

क्या कहते हैं तथ्य?

  • WHO की 2017 की आकलन रिपोर्ट: लो/मिडिल-इनकम देशों में हर 10 में 1 मेडिकल प्रोडक्ट सबस्टैंडर्ड/फॉल्सिफाइड पाया जा सकता है।
  • भारत का राष्ट्रीय ड्रग सर्वे (CDSCO, 2017-18): लगभग 3.16% NSQ (गुणवत्ता से कम), और ~0.0245% स्प्यूरियस पाए गए। स्प्यूरियस कम हैं, पर आबादी बड़ी है-इसलिए सतर्कता जरूरी।
  • भारत सरकार (2023): टॉप 300 दवा ब्रांड्स के सेकेंडरी पैक पर 2D बारकोड/QR अनिवार्य-ट्रैक-एंड-ट्रेस सुधारने के लिए। 2025 में यह व्यापक रूप से बाजार में दिख रहा है।

चेकर-किट: चेकलिस्ट, नियम, और एक मिनी डिसीज़न-ट्री

क्विक चेकलिस्ट (काउंटर/घर)

  • बिल और प्रिस्क्रिप्शन-हां/नहीं
  • पैकिंग गुणवत्ता-स्पेलिंग/लोगो/फ़ॉन्ट क्लियर?
  • बैच/एक्सपायरी-कार्टन, स्ट्रिप, लीफलेट में मैच?
  • QR/बारकोड-स्कैन डेटा बनाम प्रिंटेड डेटा मैच?
  • MRP-अनुचित भारी डिस्काउंट/स्टिकर-टैंपर?
  • टैबलेट/सिरप/इंजेक्शन-रंग/गंध/कण/सील ठीक?
  • कोल्ड-चेन इंडिकेटर-इंसुलिन/टीकों पर लागू?
  • ऑनलाइन-प्रिस्क्रिप्शन-आधारित, GST इनवॉइस, लाइसेंस?

रूल-ऑफ-थम्ब

  • दो से अधिक रेड फ्लैग = सेवन रोकें, सत्यापन करें।
  • हाई-वैल्यू/लाइफ-सेविंग दवाओं पर “बिना बिल” कभी नहीं।
  • होलोग्राम अकेला प्रमाण नहीं; हमेशा बैच/QR/बिल का जोड़ देखें।
  • जनरिक सस्ता है ≠ नकली। सोर्स और ट्रेसएबिलिटी मायने रखती है।

मिनी डिसीज़न-ट्री

  • केवल पैकेजिंग संदिग्ध? → फार्मासिस्ट से तुरंत एक्सचेंज, बैच मिलान कराएं।
  • QR/बैच mismatch? → सेवन रोकें → रिफंड/रिप्लेसमेंट मांगें → कंपनी/IPC/CDSCO पर रिपोर्ट।
  • असर नहीं/अजीब रिएक्शन? → दवा रोकें → डॉक्टर से परामर्श → Med Safety App पर रिपोर्ट।
  • ऑनलाइन पर deep discount + बिना प्रिस्क्रिप्शन? → आर्डर कैंसल करें, लाइसेंसी विकल्प चुनें।
संकेत रिस्क स्तर क्या करें
स्पेलिंग/लोगो में त्रुटि मीडियम दूसरे संकेत ढूंढें; फार्मासिस्ट से पुष्टि लें
बैच/EXP mismatch (कार्टन vs स्ट्रिप) हाई सेवन रोकें; एक्सचेंज/रिफंड; रिपोर्ट करें
QR स्कैन डेटा mismatch हाई तुरंत रोकें; कंपनी/नियामक को सूचित करें
अनुचित भारी डिस्काउंट + बिना बिल हाई खरीद न करें; लाइसेंसी सोर्स चुनें
टैबलेट में पाउडर/कण/अजीब गंध मीडियम-हाई सेवन से बचें; वैलिडेट करवाएं
असर नहीं/अजीब साइड-इफेक्ट हाई डॉक्टर से बात; PvPI पर रिपोर्ट
कोल्ड-चेन संकेत खराब हाई रिप्लेसमेंट लें; इस्तेमाल न करें
FAQ + नेक्स्ट स्टेप्स और ट्रबलशूटिंग

FAQ + नेक्स्ट स्टेप्स और ट्रबलशूटिंग

Q1. अगर मैंने शंका वाली दवा ले ली तो?
घबराएं नहीं। लक्षण देखें-रैश, उलझन, चक्कर, असामान्य प्रतिक्रिया हो तो डॉक्टर से तुरंत बात करें। पैक/स्ट्रिप/बिल रखें। आगे की डोज़ रोकें और Med Safety App (IPC) पर रिपोर्ट करें।

Q2. जन-औषधि/जनरिक सस्ती होती हैं। क्या वो नकली हैं?
नहीं। जनरिक इसलिए सस्ती हैं क्योंकि ब्रांड-मार्केटिंग कॉस्ट कम है। लाइसेंसी स्टोर, सही बैच/बिल, और फार्माकोपोइया-मानक के अनुसार बनी जनरिक दवाएं गुणवत्ता की कसौटी पर खरी उतरती हैं।

Q3. QR कोड हर दवा पर है?
अभी नहीं। 2023 के आदेश के बाद टॉप 300 ब्रांड्स के सेकेंडरी पैक पर 2D कोड अनिवार्य है। कई कंपनियां अतिरिक्त ब्रांड्स पर भी लगा रही हैं। QR न हो तो बैच/बिल/पैकेजिंग से वेरिफाई करें।

Q4. मुझे कैसे पता चले कि ऑनलाइन फार्मेसी लाइसेंसी है?
वो प्रिस्क्रिप्शन मांगे, फार्मासिस्ट सपोर्ट दे, GST इनवॉइस दे, और बिना-प्रिस्क्रिप्शन कंट्रोल्ड मेडिसिन न बेचे-ये अच्छे संकेत हैं। संदिग्ध डीप डिस्काउंट और ऑफ-ऐप पेमेंट से बचें।

Q5. हर्बल/आयुर्वेदिक दवाएं भी नकली हो सकती हैं?
हाँ, लेबलिंग/असंगति/दावे/अनुचित डिस्काउंट-ये संकेत वहां भी लागू होते हैं। लाइसेंसी निर्माता, बिल, और बैच-ट्रेसएबिलिटी देखें।

Q6. स्प्यूरियस, सबस्टैंडर्ड, और नॉट-ऑफ-स्टैंडर्ड-क्वालिटी (NSQ) में फर्क?
स्प्यूरियस = जानबूझकर गलत ब्रांड/पहचान। सबस्टैंडर्ड/NSQ = मानक पर खरा न उतरना (पोटेंसी, डिसॉल्यूशन, इत्यादि)। दोनों जोखिम भरे हैं; प्रोटोकॉल एक जैसा-सेवन रोकें, सत्यापन और रिपोर्ट।

Q7. सर्टिफिकेट/लाइसेंस कैसे देखें?
फ़ार्मेसी पर ड्रग लाइसेंस डिस्प्ले होता है। जरूरत हो तो नंबर नोट करें। निर्माता का लाइसेंस नंबर पैक पर रहता है-संदेह हो तो कंपनी कस्टमर केयर/ईमेल (पैक पर) पर बैच वेरिफिकेशन मांग सकते हैं।

नेक्स्ट स्टेप्स (अगर शंका पक्की लगे)

  1. सेवन तुरंत रोकें; पैक, स्ट्रिप, बिल और अगर हो तो QR स्कैन का स्क्रीनशॉट सुरक्षित रखें।
  2. फार्मासिस्ट से एक्सचेंज/रिफंड और स्पष्टीकरण मांगें; उसी बैच के और पैक हैं या नहीं-पूछें।
  3. डॉक्टर को दिखाएं अगर कोई लक्षण/असर में समस्या है।
  4. IPC के Med Safety App पर रिपोर्ट दर्ज करें; बैच/ब्रांड/फार्मेसी/लक्षण डिटेल दें।
  5. कंपनी के कस्टमर सपोर्ट/ईमेल पर बैच वेरिफिकेशन का अनुरोध करें; जवाब संभालकर रखें।
  6. CDSCO/राज्य दवा नियंत्रण को शिकायत भेजें (ऑनलाइन पोर्टल उपलब्ध); डॉक्युमेंट्स अटैच करें।

ट्रबलशूटिंग: अलग-अलग लोगों के लिए

  • माता-पिता (बच्चों की दवा): सिरप में कण/रंग बदलाव देखें। मापने के कप/ड्रॉपर साफ रखें। पहली डोज़ के बाद रिएक्शन पर ज्यादा ध्यान दें।
  • सीनियर सिटिज़न (मल्टी-मेड्स): स्ट्रिप पर तारीख/बैच मार्क करें। पिल-ऑर्गनाइज़र में डालने से पहले फोटो लें, ताकि बैच-ट्रेस रखा जाए।
  • क्रॉनिक कंडीशन (इंसुलिन/एंटीकोआगुलेंट): एक ही भरोसेमंद सप्लायर रखें। कोल्ड-चेन के साथ यात्रा में इंसुलेटेड बैग इस्तेमाल करें; होटल फ्रिज में फ्रीज़र-सेक्शन से दूर रखें।
  • छात्र/युवा (ऑनलाइन शॉपिंग): “प्रिस्क्रिप्शन नहीं चाहिए” देखने पर आगे बढ़ जाएं। बिल और बैच फोटो सेव करना आदत बनाएं।
  • ग्रामीण/टियर-2/3 कस्बे: ब्लिस्टर पर मैन्युफैक्चरिंग-प्रिंट फीका/उखड़ा हो तो स्ट्रिप पलटकर देखें-जेनुइन में उभार/एंबॉसिंग अक्सर साफ होता है। शंका हो तो ब्लॉक-लेवल हॉस्पिटल फार्मेसी से लें।

विश्वसनीयता और नियम-क्यों भरोसा करें?
यह गाइड भारत-विशेष पर आधारित है: CDSCO के राष्ट्रीय ड्रग सर्वे (2017-18), 2023 के 2D कोड आदेश, WHO के 2017 अनुमान, और IPC के Pharmacovigilance Programme of India के प्रोटोकॉल। मैं लखनऊ में रहते हुए रोज़मर्रा के यूज़र की नजर से भी यह जोड़ रहा हूं-जो बातें काउंटर पर सचमुच काम आती हैं। लक्ष्य है: घर-पर-होने वाली जांच आपको सुरक्षित निर्णय लेने में मदद करे, और सिस्टम तक सही रिपोर्ट पहुंचे।

द्वारा लिखित:
राजवीर जोशी
राजवीर जोशी

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