28 जुलाई 2025

पेनकिलर्स कैसे काम करते हैं: दर्द से राहत की साइंस

पेनकिलर्स कैसे काम करते हैं: दर्द से राहत की साइंस

क्या कभी आपने सोचा है कि सिर दर्द, पीठ दर्द या दांत दर्द में तुरंत आराम देने वाली गोलियां असल में करती क्या हैं? हम इन छोटी-छोटी गोलियों पर बिना सोचे-समझे भरोसा कर लेते हैं, लेकिन इनके असर का सच जानना हर किसी को हैरान कर सकता है। एक आम धारणा है कि पेनकिलर्स सीधे दर्द वाली जगह पर जाकर उसे "ठीक" कर देती हैं, लेकिन हकीकत इससे कहीं अलग है। हमारी देसी भाषा में कहें तो ये गोलियां दर्द के जड़ को नहीं, बल्कि उसकी जानकारी दिमाग तक पहुंचने के तरीके को थोड़ा घूमा देती हैं।

दर्द क्या है: हमारे शरीर का अलार्म सिस्टम

दर्द बस कोई ऐंठन या जलन नहीं है, ये शरीर का अलार्म होता है। जब भी आप खुद को चोट पहुंचाते हैं, फिसल जाते हैं या सिरदर्द हो जाता है, तो असल में होता ये है कि आपकी नसों के अंदर के खास तरह के "नॉर्सेप्टर्स" नाम के रिसेप्टर्स एक्टिव हो जाते हैं। ये रिसेप्टर्स शरीर में हुए नुकसान की खबर तुरंत आपके स्पाइनल कॉर्ड के जरिये दिमाग तक भेजते हैं। दिमाग इस सिग्नल को 'दर्द' के तौर पर महसूस करता है और तुरंत रिस्पॉन्स देता है—जैसे हाथ खींचना, बैठ जाना या कुछ दिनों तक हिल-डुलना कम करना।

असल में दर्द बहुत ज़रूरी चीज़ है, वो हमें खतरे से बचाता है। इसका उदाहरण साफ है—जिन लोगों को दुर्लभ बीमारी के चलते दर्द का अहसास नहीं होता, वे बेहद गलतियाँ कर बैठते हैं और छोटी चोटों का भी गंभीर नतीजा होता है। Interesting fact: रिसर्च बताती है कि लगभग 1 व्यक्ति प्रति मिलियन इस बीमारी का शिकार होता है।

पेनकिलर्स का असली राज: दिमाग से कैसे खेलते हैं?

अब बात करें इन दर्द निवारक गोलियों की। जो सबसे ज्यादा बेची जाती हैं— पेरासिटामोल, आइबूप्रोफेन, डिक्लोफेनाक, नैप्रॉक्सन और हमारे देश में खूब उपयोग होने वाली एस्पिरिन। सबसे दिलचस्प बात ये है कि ये दवा दर्द वाली जगह जाकर उसे ठीक नहीं करती, बल्कि हमारी नर्व सिग्नलिंग सिस्टम के बीच एंटिफेस घुसा देती हैं।

देखिए, जब चोट लगती है तो शरीर खास रासायनिक तत्व जैसे की प्रोस्टाग्लैंडिंस बनाता है, ये ही असली दोषी होते हैं दर्द और सूजन के लिए। पेनकिलर्स इन्हीं के बनने की प्रक्रिया को रोककर काम करते हैं। जैसे आइबूप्रोफेन और एस्पिरिन "COX enzymes" को ब्लॉक कर देती हैं, जिससे प्रोस्टाग्लैंडिन्स नहीं बन पाते, मतलब दर्द और सूजन कम।

पेरासिटामोल थोड़ा अलग तरह से काम करता है। इसका पूरा मैकेनिज्म आज भी पूरी तरह नहीं समझा गया है, लेकिन पढ़ाई बताती है कि ये मुख्य रूप से दिमाग में दर्द के सिग्नल को कम करता है और शरीर के तापमान को भी नियंत्रित करता है। यही वजह है कि इसे बुखार में भी सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है।

एक डेटा देखें तो इंडिया में हर साल करीब 120 करोड़ पेरासिटामोल की टैबलेट्स बेची जाती हैं, यानी लगभग हर व्यक्ति साल में एक बार तो इसे खा ही लेता है।

पेनकिलर्स के प्रकार और उनके अलग-अलग काम

पेनकिलर्स के बहुत सारे रूप होते हैं— टैबलेट, सिरप, इंजेक्शन, जेल, स्प्रे, या चिपकाने वाले पैच। हर दर्द का अपना इलाज होता है। मॉडरेट दर्द के लिए अक्सर पेरासिटामोल या आइबूप्रोफेन काफी है। हड्डी टूटने, सर्जरी के बाद, या कैन्सर जैसी बीमारियों में इस्तेमाल होती है "ओपिओइड्स" नामक दवा, जैसे मॉरफिन या ट्रामाडोल। ये सीधा दिमाग के "ओपिओइड रिसेप्टर" को धक्का देती हैं, जिससे दर्द की फीलिंग कम हो जाती है।

अगर आप लंबे समय तक (जैसे- जोड़ों के दर्द, अर्थराइटिस आदि में) पेनकिलर्स खाते हैं, तो डॉक्टर अक्सर नॉन-स्टेरॉइडल ऐंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स (NSAIDs) देते हैं। इनके चलते ब्लड क्लॉटिंग, पेट या गुर्दे पर असर हो सकता है। खासकर 50 साल से ऊपर के लोगों के लिए लंबे समय तक ऐसे दवाओं का सेवन गंभीर समस्या बन सकता है।

यहां एक छोटी-सी टेबल देखें कि किस टाइप की दवा, किस तरह के दर्द में आमतौर पर दी जाती है:

दवा का नामकिस दर्द के लिएसामान्य साइड इफेक्ट्स
Paracetamolसिरदर्द, हल्का बुखार, हल्की चोटज्यादा डोज से लीवर डैमेज
Ibuprofenजोड़ों/ मांसपेशियों का दर्द, ऐंठनपेट दर्द, एसिडिटी
Aspirinठंड, बुखार, सूजनपेट में अल्सर, ब्लीडिंग
Morphineभारी चोट, ऑपरेशन, कैन्सरनींद आना, कब्ज
पेनकिलर लेने के स्मार्ट और सुरक्षित तरीके

पेनकिलर लेने के स्मार्ट और सुरक्षित तरीके

पेनकिलर लेना तो आसान है, लेकिन अकसर लोग छोटी सी गलती कर बैठते हैं जिससे फायदे की जगह नुकसान हो जाता है। आप माने या नहीं, WHO की 2017 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हज़ारों लोग हर साल NSAIDs की वजह से पेट से जुड़ी गंभीर बीमारी के शिकार होते हैं।

  • हमेशा खाना खाने के बाद ही पेनकिलर लें। खाली पेट लेने से पेट को नुकसान पहुंच सकता है।
  • डॉक्टर की सलाह के बिना ओपिओइड्स जैसी स्ट्रॉन्ग दवा बिल्कुल न लें। ये बहुत जल्दी आदत बना सकती हैं।
  • अगर आप लिवर, किडनी या दिल की बीमारी से जूझ रहे हैं तो किसी भी दवा की मात्रा डॉक्टर से तय कराकर ही लें।
  • अगर लगातार 4-5 दिन से ज्यादा दर्द रहता है, तो सिर्फ दवा ना खाते रहें—असल कारण का इलाज डॉक्टरी सलाह पर ही करवाएं।
  • बच्चों के लिए हमेशा उनकी उम्र और वजन के हिसाब से ही डोज़ दें।
  • जिनको एलर्जी की समस्या है, वो किसी नई दवा को खाने से पहले उसका पूरा नाम और साइड इफेक्ट्स जरूर पढ़ लें।

बाज़ार में बहुत सारे हर्बल या घरेलु नुस्खों के नाम पर भी पेन रिलीफ ऑयल या जेल बिकते हैं, पर इनके असर की गारंटी कोई नहीं देता। ऐसी दवाओं पर ज्यादा भरोसा करना रिस्क हो सकता है। WHO की गाइडलाइन कहती है— देसी नुस्खा तभी अपनाएं जब आधुनिक चिकित्सा की पहुंच न हो।

डराना नहीं चाहता, पर लंबे समय तक लगातार दर्द की दवा का सेवन लोगों को पेट में अल्सर, पुरानी एसिडिटी, लीवर या किडनी की बीमारी दे सकता है। याद रखिए, दवा राहत देती है, जड़ से कारण नहीं खत्म करती। हर दर्द का कारण जानकर इलाज कराना ही समझदारी है।

कुछ हैरान करने वाले सवाल और जवाब

लोग अकसर मान लेते हैं कि ज्यादा पेनकिलर खाने से दर्द जल्दी और ज्यादा दूर हो जाएगा। सच ये है कि सीमित डोज ही असर करता है, उसके आगे शरीर के रिसेप्टर ज्यादा दवा स्वीकार ही नहीं करते। और नुकसान अलग से हो सकता है।

कई लोग पूछते हैं – क्या पेनकिलर आदत डाल देती हैं? हर दवा नहीं, लेकिन ओपिओइड्स और स्ट्रॉन्ग पेनकिलर जरूर करती हैं, इसलिए इन्हें डॉक्टर की देख-रेख में ही लेना चाहिए।

क्या पेनकिलर बुखार या सूजन में फायदा देती हैं? जी हां, पेरासिटामोल और NSAIDs बुखार, सिरदर्द, हल्की सूजन में असरदार हैं, लेकिन वायरल या बैक्टीरियल इन्फेक्शन में इनका सिर्फ सिम्पटमेटिक फायदा है, असली इलाज नहीं।

क्या पेनकिलर हर दर्द के लिए एक जैसी असरदार हैं? नहीं—सबका अपना खास रोल है। सिरदर्द, ऐंठन, डेंगू बुखार या चोट में कौन सी दवा सही है, इसका चुनाव डॉक्टर ही कर सकते हैं।

दर्द वाली जगह पर पेनकिलर का स्प्रे या जेल लगाने से भी राहत मिलती है, पर ये सिर्फ सतही दर्द, मसल खिंचाव, हल्की सूजन या मोच के लिए किफायती है। गहरे या लगातार दर्द के लिए गोली ही असरदार रहती है।

हकीकत और मिथक: पेनकिलर्स का सच

लोग अकसर मानते हैं कि बगैर डॉक्टर के सलाह के OTC (ओवर-द-काउंटर) पेनकिलर लेना पूरी तरह सुरक्षित है। झोल यहीं है—असलियत यह है कि कई बार बेफिजूल दवाइयां न सिर्फ कोई फायदा नहीं देतीं, बल्कि नए-नए कॉम्प्लिकेशन खड़े कर देती हैं।

पेनकिलर्स बेशक हमारी जिंदगी आसान बनाती हैं, लेकिन दर्द से राहत के चक्कर में इनका सही इस्तेमाल ही समझदारी है। बेचैनी, कमजोरी, उल्टी, डायरिया, असहनीय पेट दर्द, आंख पीली पड़ना—अगर कुछ भी नया लक्षण दिखे तो खुद डॉक्टर बनकर जिंदगी के साथ रिस्क न लें।

सभी बड़े सरकारी अस्पतालों और WHO की गाइडलाइन यही कहती हैं—लंबे समय तक, बार-बार या जरूरत से ज्यादा पेनकिलर का इस्तेमाल कम करें, असली समाधान दर्द की जड़ तक पहुंचना है, सिर्फ लक्षणों को दबाना नहीं।

आखिरी बात, दर्द भगवान की ओर से दिया गया एक संकेत है—इसे नजरअंदाज मत करिए, तकलीफ की वजह समझिए और दवाईयों के इस्तेमाल में सावधानी बरतिए। बस थोड़ी सी समझ और सही जानकारी, आपकी सेहत को लंबा और सुकून भरा बना सकती है।

द्वारा लिखित:
राजवीर जोशी
राजवीर जोशी

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